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कविता

शून्य होकर

भवानीप्रसाद मिश्र


शून्य होकर
बैठ जाता है जैसे
उदास बच्चा

उस दिन उतना अकेला
और असहाय बैठा दिखा
शाम का पहला तारा

काफी देर तक
नहीं आए दूसरे तारे
और जब आए तब भी

ऐसा नहीं लगा
पहले ने उन्हें महसूस किया है
या दूसरों ने पहले को !

 


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हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ